'The Diplomat' : उज़मा अहमद की सच्ची घटना पर आधारित एक प्रेरणादायक कथा

हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई एक फिल्म ने दर्शकों के बीच तेज़ी से लोकप्रियता हासिल की और कुछ ही दिनों में प्लेटफ़ॉर्म पर शीर्ष स्थान पर पहुंच गई। यह फिल्म 2017 की उस सच्ची घटना से प्रेरित है, जिसमें एक भारतीय महिला, उज़मा अहमद, पाकिस्तान में फंसी थी। यह कहानी न सिर्फ़ एक महिला के साहसिक संघर्ष को सामने लाती है, बल्कि भारतीय कूटनीति, मानवाधिकारों और महिला सशक्तिकरण के मुद्दों को भी गहराई से छूती है।

The Diplomat
The Diplomat

Toc

उज़मा अहमद: एक सामान्य युवती, असाधारण परिस्थिति में

उज़मा अहमद, दिल्ली निवासी एक शिक्षित युवती थीं, जो मलेशिया में पढ़ाई कर रही थीं। वहीं उनकी मुलाकात पाकिस्तानी नागरिक ताहिर अली से हुई। दोनों के बीच दोस्ती बढ़ी और धीरे-धीरे यह रिश्ता प्रेम में बदल गया। ताहिर ने उज़मा को पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया, जिससे वह ताहिर के परिवार से मिल सकें। उज़मा, एक सकारात्मक सोच और भरोसे के साथ पाकिस्तान पहुंचीं, लेकिन वहां पहुंचते ही उनका जीवन एक भयावह मोड़ ले लिया।

जब प्यार एक जाल बन गया

पाकिस्तान पहुंचने के बाद उज़मा को पता चला कि ताहिर पहले से शादीशुदा था और उसके कई बच्चे थे। इस बात की जानकारी के तुरंत बाद, उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। उन्हें बंदूक की नोक पर विवाह के लिए मजबूर किया गया, नशीली दवाएं दी गईं और उनके सारे यात्रा दस्तावेज जब्त कर लिए गए। उन्हें एक छोटे से कमरे में बंद कर दिया गया और पूरी तरह से दुनिया से काट दिया गया।

भारतीय उच्चायोग की भूमिका: कूटनीति और करुणा का उत्कृष्ट उदाहरण

इस कठिन परिस्थिति में उज़मा ने अत्यंत साहस और चतुराई का परिचय दिया। उन्होंने किसी तरह अपने एक मित्र से संपर्क किया, जो मलेशिया में था। उस मित्र की सलाह पर उन्होंने इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग से संपर्क करने का प्रयास किया। उन्होंने ताहिर को यह कहकर बहलाया कि भारतीय परंपरा के अनुसार, शादी के बाद उनके परिवार से कुछ धन प्राप्त होगा, जो उनके भाई द्वारा (जो उच्चायोग में कार्यरत बताया गया) उन्हें सौंपा जाएगा।

यह युक्ति सफल रही और उज़मा किसी प्रकार उच्चायोग पहुंच गईं। वहां उन्होंने तत्कालीन भारतीय उप उच्चायुक्त जे. पी. सिंह को अपनी पूरी कहानी बताई। सिंह और उनकी टीम ने न केवल उज़मा को शरण दी, बल्कि उनके कानूनी और दूतावासीय संरक्षण की व्यवस्था भी की। इस प्रक्रिया में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की भूमिका अत्यंत सराहनीय रही। उनके मार्गदर्शन में भारतीय उच्चायोग ने उज़मा के लिए इस्लामाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्हें भारत लौटने की अनुमति मांगी गई।



कानूनी लड़ाई और वापसी की राह

इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने यह याचिका स्वीकार की और उज़मा को भारत लौटने की अनुमति दी गई। इसके बाद, पाकिस्तान पुलिस की निगरानी में उन्हें वाघा सीमा तक पहुंचाया गया। 25 मई 2017 को उज़मा भारत लौट आईं। भारत पहुंचते ही उन्होंने भारतीय मिट्टी को चूमा और अपनी आज़ादी पर आभार व्यक्त किया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उन्हें “भारत की बेटी” कहकर सम्मानित किया।

‘द डिप्लोमैट’ फिल्म: यथार्थ और कल्पना का संतुलन

‘द डिप्लोमैट’ फिल्म, जिसे नेटफ्लिक्स पर जारी किया गया, उज़मा की इसी घटना पर आधारित है। फिल्म में अभिनेता जॉन अब्राहम ने एक भारतीय राजनयिक की भूमिका निभाई है, जबकि अभिनेत्री सादिया खतीब ने उज़मा के चरित्र को पर्दे पर सजीव किया है।

हालांकि फिल्म की पटकथा में कुछ रचनात्मक स्वतंत्रताएं ली गई हैं – जैसे कि एक काल्पनिक हमले का दृश्य – लेकिन इसका मूल आधार सत्य घटना पर ही टिका है। फिल्म एक ओर जहां व्यक्तिगत दर्द और पीड़ा को दिखाती है, वहीं दूसरी ओर यह राष्ट्रीय गौरव और कूटनीतिक संप्रभुता की गाथा भी है।

Also read अल्लू अर्जुन की नई फिल्म A6 x AA22

आलोचनात्मक दृष्टिकोण

फिल्म को लेकर समीक्षकों की राय मिली-जुली रही है। कुछ समीक्षकों ने पटकथा को थोड़ा सतही बताया, जिसमें कूटनीतिक प्रक्रियाओं की जटिलता को साधारण रूप में दर्शाया गया है। वहीं, फिल्म की भावनात्मक गहराई भी कुछ दृश्यों में कमतर लगती है। हालांकि, इसके बावजूद, दर्शकों ने इसे एक प्रेरणादायक और आवश्यक कहानी माना है, जो ऐसे विषय पर प्रकाश डालती है जिस पर आमतौर पर चर्चा नहीं होती।

उज़मा की आज की ज़िंदगी

वापसी के बाद उज़मा ने एक साधारण लेकिन गरिमापूर्ण जीवन की शुरुआत की। उन्होंने दिल्ली के ब्रह्मपुरी इलाके में एक ब्यूटी पार्लर खोला, जिसका नाम उन्होंने अपनी बेटी ‘फलक’ के नाम पर रखा। उन्होंने बताया कि उन्हें एक निर्देशक द्वारा 15 लाख रुपये की सहायता राशि दी गई, जिससे उन्होंने एक छोटा सा घर खरीदा।

उज़मा आज एक आत्मनिर्भर महिला के रूप में अपनी ज़िंदगी जी रही हैं और उनके अनुभव न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए एक मिसाल बन चुके हैं।

निष्कर्ष

‘द डिप्लोमैट’ केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक सच्चाई पर आधारित भावनात्मक और प्रेरक गाथा है। उज़मा अहमद की कहानी हमें यह सिखाती है कि अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी साहस, आत्मबल और सही सहयोग से मुक्ति पाई जा सकती है। साथ ही यह भारतीय विदेश मंत्रालय और राजनयिक तंत्र की संवेदनशीलता और सक्रियता का प्रमाण भी है।

यह फिल्म और इसके पीछे की सच्चाई, उन अनगिनत महिलाओं की आवाज़ है जो कई बार खामोशी से पीड़ा सहती हैं। यह कहानी बताती है कि अगर इरादे मजबूत हों और संस्थाएं जिम्मेदार हों, तो कोई भी चुनौती असंभव नहीं 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!